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आधुनिक युग की तकनीक है ड्रोन

Pratyush Sharma by Pratyush Sharma
November 18, 2022
in Disaster Management, General, Policing
Reading Time: 1 min read
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आधुनिक युग की तकनीक है ड्रोन
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ड्रोन काफी तेजी से नये जमाने की उभरती हुई तकनीक बनते जा रहे है । ड्रोन एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जिसे हम आसमान में एक रिमोट की सहायता से उड़ा सकते हैं। ड्रोन आधुनिक युग की तकनीक का एक नया आयाम है जिसे आसानी से किसी भी व्यक्ति द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है और दैनिक कार्यों के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है।  ड्रोन के उपयोग के कई फायदे हैं । इससे न केवल लागत में कमी आती है, बल्कि समय की भी काफी बचत होती है, क्योंकि इसे ट्रैफिक अवरोध का सामना नहीं करना पड़ता, साथ ही इसके प्रयोग से कंपनियों की श्रम लागत भी काफी कम हो जाती है।
1990 के दशक में, भारतीय सेना ने इजरायल से मानव रहित हवाई वाहन या यूएवी हासिल किए, और भारतीय वायु सेना और नौसेना ने भी इसका अनुसरण किया। भारत ने पहली बार 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य ड्रोन का इस्तेमाल किया था। ड्रोन का उपयोग कई कामों के लिए में किया जाता है । फोटोग्राफी से लेकर छोटे सामान की डिलीवरी तक में ड्रोन का उपयोग किया जा रहा है। नागर विमानन मंत्रालय भारत सरकार की तरफ़ से मानव रहित एयरक्राफ्ट सिस्टम नियम 2021 में बनाये गये हैं।
केंद्र सरकार ने बजट 2022 में ‘ड्रोन शक्ति’ की घोषणा करके ड्रोन उद्योग को नई दिशा दी है। इस पहल से ड्रोन-एस-ए-सर्विस स्थापित करने में भी मदद मिलेगी। कई तरीकों के माध्यम से ‘ड्रोन शक्ति’ के सम्बंधित स्टार्ट-अप को बढ़ावा दिया जाएगा।
ड्रोन के वजन और साइज के अनुसार इसे तीन वर्गों में बांटा गया है। पहला है नैनो ड्रोन्स जिसमें 250 ग्राम से कम वजन वाले ड्रोन आते हैं। नियम के अनुसार इसको उड़ाने के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं होती है। दूसरा वर्ग है माइक्रो औऱ स्मॉल ड्रोन ।
 माइक्रो ड्रोन का वजन 250 ग्राम से ज्यादा लेकिन 2 किलोग्राम से कम होता है औऱ स्मॉल ड्रोन का वजन 2 किलोग्राम से ज्यादा लेकिन 25 किलोग्राम से कम होता है। तीसरा वर्ग है- मीडियम और लार्ज ड्रोन-  मीडियम ड्रोन्स का वजन 25 किलोग्राम से ज्यादा लेकिन 150 किलोग्राम से कम होता है औऱ लार्ज ड्रोन का वजन 150 किलोग्राम से ज्यादा होता है।  दूसरे औऱ तीसरे वर्ग के ड्रोन उड़ाने के लिए ऑपरेटर परमिट औऱ लाइसेंस लेना पड़ता है।
दो तरह के लाइसेंस जारी किये जाते हैं – पहला स्टूडेंट रिमोट पायलट लाइसेंस और दूसरा रिमोट पायलट लाइसेंस ।
टेक्नोलॉजी के मामले में दुनिया भर में कई देश चीन पर निर्भरता घटाना चाहते हैं। हमारा देश भी तकनीकी उपकरणों के निर्माण और संरक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास कर रहा है। नई ड्रोन नीति इसी प्रयास का एक उदाहरण है।
 इस साल गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य पर हमारे देश में निर्मित करीब 1000 ड्रोनों ने कई कलाकृतियां बनाकर आसमान को रौशन कर दिया। ये टेक्नोलॉजी में भारत के बढ़ते असर को दिखाने की कोशिश थी, उसके कुछ दिन बाद ही हमारे देश ने विदेश निर्मित ड्रोन के आयात को पूरी तरह से बैन कर दिया।
ये बैन भारत को ड्रोन निर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए लगाया गया है । इसके साथ ही सुरक्षा नजरिये से देखा जाये तो यह बैन भारतीय वायुक्षेत्र से चीनी ड्रोन बाहर रखने की कोशिश भी है।
हाल ही में भारतीय कंपनी आईडिया फोर्ज ने भारतीय सेना के साथ मिलिट्री ड्रोन बनाने की करीब 1.5 अरब रुपये की डील की है ।
इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अभी बहुत काम करने की जरूरत है। अच्छे ड्रोन के लिए गुणवत्ता वाली मोटर और लीथियम आयन बैटरी का निर्माण हमारे देश में नहीं होता है। इसी कारण ही ड्रोन निर्माता इन चीजों का चीन जैसे देशों से आयात करते हैं। इस स्थिति को सुधारने के लिए केंद्र सरकार ने ड्रोन और उसके पुर्जे बनाने के लिए एक प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव योजना की शुरुआत की है और अगले तीन सालों में ड्रोन निर्माताओं को प्रोत्साहन राशि देने की बात भी कही है। यह उम्मीद है कि अगले तीन वर्षों में इस सेक्टर में 50 अरब रुपये का निवेश होगा।
ड्रोन का इस्तेमाल कृषि संबंधी कार्यों में और प्रधानमंत्री  स्वामित्व योजना के तहत गांवों में लोगों की संपत्तियों के सर्वे के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है। 21वीं सदी में आधुनिक कृषि सुविधाएं मुहैया कराने में यह एक  मील का पत्थर साबित होगा । नीतिगत निर्णयों में प्रौद्योगिकी और नवाचार को प्राथमिकता दी जा रही है। गत दिनों प्रधानमंत्री ने देश के विभिन्न हिस्सों में कीटनाशकों तथा अन्य कृषि सामग्री का छिड़काव करने के लिए 100 ‘किसान ड्रोन’का उद्घाटन किया। इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
हमारा हिमाचल भी इस क्षेत्र में बहुत बढ़िया काम कर रहा है।
गत दिनों हमारे हिमाचल के हमीरपुर जिले में पायलट आधार पर शुरू की गई केंद्र सरकार की स्वामित्व योजना के अंतर्गत ड्रोन सर्वे का शुभारंभ किया गया। हिमाचल प्रदेश में अब ड्रोन की मदद से खनन माफिया पर भी नजर रखी जाएगी। पहले चरण में तीन जिलों ऊना, सिरमौर और कांगड़ा में ड्रोन के उपयोग किया जाएगा। ड्रोन का इस्तेमाल पुलिस विभाग  करेगा औऱ किसी भी प्रकार की अवैध खनन गतिविधियां सामने आते ही तत्काल खनन विभाग को सूचित करेंगे। खनन विभाग के अधिकारियों की टीम मौके पर जाकर अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेगी।
हमारे प्रदेश के मंडी जिला में ड्रोन की मदद से दुर्गम क्षेत्रों तक दवाईयां पहुंचाने के प्रयास किये जा रहे हैं जिसमें दुर्गम क्षेत्रों में लोगों के विभिन्न प्रकार के सैंपल लेकर उन्हें जांच के लिए जोनल हास्पिटल मंडी या फिर मेडिकल कालेज नेरचौक तक पहुंचाने का कार्य भी शामिल है । राज्य सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से मंजूरी मिलने के बाद ड्रोन का सफल ट्रायल किया है।
प्रदेश का पहला ड्रोन मेला गत दिनों प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जिला प्रशासन कांगड़ा के सहयोग से धर्मशाला के साई स्टेडियम में लगाया गया।  बहुत जल्द इसके लिए प्रशिक्षण संस्थान भी खोले जाए रहे हैं, ताकि युवा पीढ़ी ड्रोन तकनीक के क्षेत्र में रोजगार हासिल कर सके। भविष्य में  राज्य की अन्य जगहों पर भी ड्रोन मेले आयोजित किए जाएंगे, ताकि लोगों के साथ साथ युवाओं को ड्रोन तकनीक के बारे में जानकारी मिल सके। मेले के दौरान साई स्टेडियम से टांडा के डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज ड्रोन से दवाइयां भेजने का ट्रायल भी सफल रहा। धर्मशाला से ड्रोन के साथ बांधकर भेजी गईं दवाएं 20 मिनट में टांडा पहुंच गईं, जबकि धर्मशाला से टांडा निजी गाड़ी से पहुंचने में 45 मिनट और बस से करीब डेढ़ घंटा लगता है।  इसका ट्रायल करने वाली स्काई कंपनी कहना है कि जरूरत पड़ने पर यह कंपनी ड्रोन से दुर्गम क्षेत्रों में दवाएं, सैंपल और खून आदि भी पहुंचा सकेगी।
अभी हाल ही में कांगड़ा की आईटीआई शाहपुर में देश का तीसरा और प्रदेश का पहला ड्रोन प्रशिक्षण केंद्र शुरू हो गया है। इसके लिए आईटीआई शाहपुर और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी के बीच पांच साल के लिए एमओयू साइन हो चुका है। यहां पर एक हफ्ते ट्रेनिंग करवाई जाएगी। हफ्ते के तीन दिन ऑनलाइन थ्योरी और तीन दिन ड्रोन की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जाएगी। ट्रेनिंग के बाद 45 दिन के भीतर प्लेसमेंट करवाने की भी कोशिश की जाएगी।
भारत सरकार ने इस बार आम बजट में फसलों पर दवा स्प्रे करने के लिए भी ड्रोन के इस्तेमाल की बात कही है। हमारे प्रदेश के खेतों और बगीचों में जल्द ही ड्रोन खाद और दवाओं का स्प्रे करने में मददगार साबित होंगें । सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने ड्रोन की खरीद और किराये पर सुविधा देने के लिए नौ कंपनियों का चयन किया है। कोई भी विभाग या व्यक्ति शुल्क अदा करके यह सेवा ले सकेगा। ड्रोन को कृषि, बागवानी, मेलों, दवाइयां पहुंचाने, सुरक्षा दृष्टि के साथ अन्य आयोजनों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। सुविधा लेने के लिए आईटी विभाग से संपर्क करना होगा। विभाग की ओर से चयनित कंपनियों की सेवा लेने के लिए दाम तय किए गए हैं। दाम चुकाने के बाद इसकी सुविधा ले सकेंगे। विभाग के माध्यम से ड्रोन की खरीद भी की जा सकेगी।
प्राकृतिक आपदाओं के समय में प्रभावित स्थान पर जाना इंसानों के लिये अपेक्षाकृत मुश्किल होता है , ड्रोन की यह विशेषता उसे आपदा प्रबंधन में प्रयोग करने के लिये भी एक अच्छा विकल्प बनाती है।
भविष्य में हमारे राज्य के शक्तिपीठों औऱ मुख्य मंदिरों की सुरक्षा में भी ड्रोन की मदद ली जाएगी । स्थानीय प्रशासन द्वारा  सुरक्षा बंदोबस्त बनाए रखने के लिए मंदिरों में होने वाले मुख्य आयोजनों के दौरान भी ड्रोन की मदद ली जाएगी।
भविष्य में इस क्षेत्र में काम कर रहे स्टार्ट अप और युवाओं को रोजगार प्रदान करने में मदद करेंगे और नवाचार, तकनीक और इंजीनियरिंग में भारत की ताक़त को मज़बूत करके भारत को ड्रोन हब बनाएंगे।
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Pratyush Sharma

Pratyush Sharma

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